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    Thursday, 7 June 2018

    WTO and Food Security



                          हाल ही में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में 164 सदस्य वाले देशों के विश्व व्यापार संगठन की  11 वी मंत्रीस्तरीय बैठक सम्पन्न हुई । दुर्भागयवश यह बैठक भी लम्बे अरसे से विवादस्पद  खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर स्थायी समाधान निकालने में नाकाम रही । 
                     अमेरिका  समेत तमाम विकसित देश वर्ष 1986- 88 के उस नियम के तहत खाद्य सब्सिडी के प्रति अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं , जिसके मुताबिक किसी भी सदस्य देश द्वारा कुल कृषि उत्पादन के 10 % से अधिक ' खाद्य सब्सिडी ' देना  संगठन के नियमों के विरुद्ध है । जबकि  भारत सहित ज्यादातर विकासशील देशों की यह अनिवार्य जरूरत सी बन गयी है । भारत की 80 करोड़ आबादी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों से जुड़ी है तो आधे से ज्यादा लोगों का रोजगार मानसून  आधारित कृषि क्षेत्र पर निर्भर है ।
                            ऐसे में विकसित देशों को प्रासंगिक होकर गम्भीरता से इस पर गौर करने की आवश्यकता है कि भारत भले ही आर्थिक रुप से सशक्त हो रहा हो लेकिन कम उत्पादकता वाली कृषि और खाद्य सब्सिडी  वर्तमान में भी इसकी जीवन रेखा बनी हुई है । चूँकि खुले बाजार के दौर में भारत लम्बे समय तक  विश्व व्यापार संगठन नियमों से अलग नहीँ चल सकता इसलिये हमें कृषि को धारणीय बनाने  की दिशा में सशक्त क़दम उठाने होंगे । 
                             किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये ' जीरो बजट खेती ' को बढावा दिया जा सकता है  जिसमें किसान गोमूत्र व गोबर के साथ अन्य उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर उर्वरक व कीटनाशक तैयार करे । किसान  धान , गेहूँ के दुष्चक्र को तोड़ दलहन जैसी खेती को अपनाये इसके लिये  जागरूकता आवश्यक है । इसके अलावा किसानों की  दुगनी आय करने में ' खाद्य प्रसंस्करण उद्योग ' कारगर भूमिका निभा सकता है ।अध्ययन बताते हैं कि दुध ,फल ,सब्जी में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद भारत में केवल 10 फीसद खाद्यान्न की  प्रोसेसिंग हो पाती है । 



                         अतः विकसित देशों की स्वजन हित से परे बहुजन हिताय व  बहुजन सुखाय  की नीति और भारत के प्रयासों में संवेदनशीलता ही खाद्य सुरक्षा का स्थायी समाधान है । 

    • लेखक  - विनोद राठी
    (रोहतक हरियाणा)
    बिजनेस स्टैंडर्ड  - 18 Dec. 2017

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