19 फ़रवरी को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के करोड़ों छात्रों से परीक्षा को लेकर अपने विचार साझा किये । देश के प्रधानमंत्री द्वारा चुने गये विषय ' परीक्षा पर चर्चा ' की संवेदनशीलता को 2016 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( NCRB ) के आंकड़ों के माध्यम से समझा जा सकता है जिसके मुताबिक भारत में हर घंटे में एक छात्र पढाई के दबाव से आत्महत्या करता है ! कुछ ऐसी ही तस्वीर 2012 में प्रकाशित मेडिकल जर्नल लॉसेंट की रिपोर्ट बयां करती है । बहरहाल, मूल सवाल तो यही है कि इस छात्र रूपी आत्महत्या के पीछे जिम्मेदार कौन है ?
दरअसल , इस अप्रिय स्थिति के पीछे त्रिकोणीय कारक जिम्मेदार हैं । यहाँ त्रिकोणीय कारकों का अर्थ है शिक्षा व्यवस्था के स्वरूप , माता- पिता का असंवेदनशील व्यवहार और विद्यार्थियों में प्रतिस्पर्धा के दबाव से है ।
हमारे नीति निर्माताओं द्वारा वर्तमान की पारम्परिक व सैधांतिक पाठ्यक्रम वाली रटंत विद्या में आमूलचूल परिवर्तन कर उसे आधुनिक और प्रायोगिक बनाने के साथ रुचिकर बनाये जाने पर विचार किये जाने की सख्त आवश्यकता है । रुचिकर बनाने में डिजिटल तरीका एक बेहतर विकल्प हो सकता है ।
इसके अतिरिक्त अभिभावकों को भी 'सोशल स्टेटस ' के चलते बच्चों पर अंक आधारित दबाव डालने की आदत से उबरने की जरूरत है । इस सम्बन्ध में हमारी मीडिया विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अभिभावकों को शिक्षित करने में बड़ी अहम भूमिका निभा सकती है ।
देश का भविष्य परीक्षा को लेकर आतंकित न हों तथा प्रतिस्पर्धा की बजाय 'अनुस्पर्धा' की ओर प्रेरित हो इसके लिये ब्लॉक स्तर पर एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिये जो समय - समय पर विद्यार्थियों को इस सम्बन्ध में मार्गदर्शन करता रहे ।
रवींद्रनाथ टैगोर जी कहते थे " किसी भी शिक्षा संस्थान का पहला उत्तरदायित्व पढ़ाना लिखाना नहीँ बल्कि ऐसा वातवरण पैदा करना है जिससे बच्चे स्वयं मिलकर सीख सकें ।" मुझे लगता है कि देश को जिस रचनात्मकता और नवोन्मेषता की बेसब्री से दरकार है , वह ऐसे माहौल में ही सम्भव है ।
उम्मीद है की आगामी नयी शिक्षा नीति अध्ययन मनन , चिंतन और उपयोग पर आधारित होगी
• विनोद राठी
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In English
On February 19, Hon'ble Prime Minister Narendra Modi shared his views with millions of students from the country about the examination. The sensitivity of topics discussed by the Prime Minister of India can be understood through the data of the National Crime Records Bureau (NCRB) released in 2016, according to which a student commits suicide every week in India. ! A similar picture shows the report of the medical journal Lausent published in 2012. However, the basic question is, who is responsible for the suicide of this student?
Actually, the triangular factors behind this unpleasant situation are responsible. Here triangular factors mean the nature of the education system, the insensitive behavior of the parents and the pressures of competing among the students.
There is a dire need to be considered by our policy makers to make the custom of traditional and theoretical curriculum changes, making it modern and experimental, and interesting to be made. Digital way may be a better option in making gourmets.
Apart from this, parents also need to overcome the habit of putting pressure based on children due to 'social status'. In this connection, our media can play an important role in educating parents through various programs.
For the future of the country, do not panic about the examination and to become motivated towards "cross" rather than competition, a mechanism should be developed at the block level, which has been guiding students in this regard from time to time.
Rabindranath Tagore ji had said, "No education is to teach the first responsibility of any educational institution, but to create an environment that children can learn by themselves." I think the creativity and innovation that the nation desperately needs is only possible in such an environment.
It is expected that the upcoming new education policy will be based on contemplation, contemplation and utilization