भारत और नेपाल के संबंधों में कितनी प्रगाढ़ता है , इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत में जहां 60 लाख से भी ज्यादा नेपाल मूल के नागरिक कार्यरत हैं , वहीं 6 लाख के करीब हमारे भारतीय भी नेपाल में अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं । बात रोज रोटी तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारतीय सेना व अर्धसैनिक बलों में 45 हजार नेपाल मूल के नागरिकों का प्रतिनिधित्व भी इस बात को दर्शाता है कि भारत अपने पडोसी देश नेपाल को कितनी तरजीह देता है ।
यूं तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले दो बार नेपाल की यात्रा कर चुके हैं , लेकिन इस बार की 11 मई को प्रस्तावित उनकी तीसरी नेपाल यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है । बताया जा रहा है कि 2014 के अपने दौरे की भांति नेपाल की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री अपनी ही कार का इस्तेमाल करेंगे । विदित हो, कि कुछ दिन पूर्व ही नेपाल के पीएम के पी शर्मा साहब भारत की यात्रा पर आए थे । यात्रा के दौरान पीएम मोदी को नेपाल भ्रमण करने का न्योता भी दिया था । लेकिन दुर्भाग्यवश चीन की पूर्व-प्रस्तावित यात्रा होने के कारण हमारे प्रधानमंत्री वहां नहीं जा सके । के पी शर्मा साहब के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वे एक भारत विरोधी और चीन समर्थक नेता हैं। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि अपनी यात्रा के दौरान भारत को दिये गये न्योता का सकारात्मक प्रभाव इस तीसरी यात्रा में देखने को मिलेगा ।
दरअसल, चीन अपने विस्तारवादी मंसुबे के तहत नेपाल में कितना भी बुनियादी ढांचा विकसित कर ले लेकिन इस सच्चाई को नहीं बरगला सकता कि एक तरफ जहां भारत के नेपाल के साथ अपने सुरक्षा हित छिपे हैं तो नेपाल की आर्थिक व्यवस्था भी काफी हद तक भारत पर निर्भर है । नेपाल के कुल कारोबार में 66 फीसद हिस्सेदारी भारत की है । दोनों देशों के मध्य प्रति सप्ताह लगभग 60 उड़ानों का भरा जाना एवं नेपाल पर्यटकों में 20 फीसद भारतीयों की हिस्सेदारी इस बात की ओर इशारा करता है कि ' इंडो- नेपाल ' संबंध कोई आम संबंध नहीं बल्कि इनके संबंधों में उतनी ही गहराई है जितनी रोटी- बेटी के संबंध में होती है ।
चुंकि नेपाल भारत का सबसे निकटतम और ऐतिहासिक पड़ोसी राष्ट्र है और पड़ोसी से रिश्तेदार भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में नेपाल में चीन का बढ़ते हस्तक्षेप से भारत की चिंता को समझा जा सकता है । लेकिन एक अच्छे और समझदार पड़ोसी का दायित्व यह भी है कि वह अपने पड़ोसी की निजता का पूरा सम्मान करें ।
दरअसल , भारत अगर इस सच्चाई को स्वीकार कर ले कि नेपाल चीन की ओर आकर्षित नहीं बल्कि चीन नेपाल में अपनी पैठ जमाना चाह रहा है तो भारत में नेपाल के प्रति एक सकारात्मक नजरिया पैदा हो सकेगा और लंबे अरसे से लंबित महा काली नदी पर पंचेस्वर बांध जैसी अनेक उन योजनाओं को भी कार्यांवित रुप दिया जा सकेगा जो दोनों देशों के मधुर संबंध में सबसे बड़ी चुनौती है । मात्र सबका साथ सबका विकास में पड़ोसी राष्ट्रों को शामिल करने से बात नहीं बनेगी बल्कि उनमें आपसी समझ बढ़ाने से ही दोनों देशों के राष्ट्रहित सध सकते और चीन के विस्तारवादी मंसुबों पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
BY - VINOD RATHEE
(दैनिक सच कहूं डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट जनसत्ता में प्रकाशित - 9.05.2018 )
(दैनिक सच कहूं डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट जनसत्ता में प्रकाशित - 9.05.2018 )