इस बार के केंद्रीय बजट 2018-19 में ' आयुष्मान भारत ' योजना लॉन्च की । इस योजना में दो प्रमुख पहलें शामिल हैं । पहली , 1.5 लाख स्वास्थ्य व आरोग्य केन्द्रों के अलावा 24 नये सरकारी चिकित्सा कॉलेज व अस्पतालों की स्थापना और दूसरी , राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण स्कीम के तहत देश की 40 फीसद आबादी अर्थात 10 करोड़ से भी ज्यादा परिवारों के लिये पाँच लाख तक का स्वास्थ्य बीमें का प्रावधान । स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह विश्व का सबसे बड़ा सरकारी -वित्तपोषित कार्यक्रम है ।
निश्चित रुप से इस योजना में डेढ़ लाख जिन स्वास्थ्य व आरोग्य केन्द्र स्थापना की परिकल्पना की है , वह आम मानवी तक स्वास्थ्य सुविधा की पहुँच सुनिश्चत करने में एक अहम भूमिका निभायेगा ।
इसी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के अन्तर्गत 5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमे का प्रावधान भी कमजोर तबके के परिवारों को इलाजी कर्जे से ऊबारने की एक बेहतरीन कोशिश है ।
किंतु गुणवत्तापूर्ण इलाज और डॉक्टरों का अभाव इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है , जिस पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है । गुणवत्ता के अभाव में जहाँ असमय मृत्यु दर संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 21 के तहत ' जीवन जीने के अधिकार ' को चुनौती देती हुई दिख रही है वहीँ देश की 56 फीसद शहरी तथा 49 फीसद ग्रामीण आबादी डॉक्टरों के अभाव में निजी अस्पतालों को भारी भरकम राशि देने पर मजबूर है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में डॉक्टर मरीज अनुपात 1 : 17,00 है जबकि मानकों के मुताबिक यह अनुपात 1 : 400 होना चाहिये । स्वास्थ्य , शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव शहरीकरण को भी बढावा देता है जो धारणीय विकास के लिये सही नहीँ है ।
इस कार्यक्रम के सफल क्रियान्वन में राज्यों की भूमिका को कम नहीँ आँका जा सकता। ऐसे में आवश्यक है कि हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी हेल्थ इंडेक्स में अपनी स्थिति का मूल्यांकन करते हुये सभी राज्य स्वास्थ्य क्षेत्र को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने का लक्ष्य बनाये ।
केन्द्र - राज्यों के संयुक्त प्रयासों , लोगों में योजना की जागरूकता के अतिरिक्त सामान्य बीमारी के इलाज हेतु एम बी बी एस ( MBBS ) की तर्ज पर नये कोर्सो की शुरुआत के माध्यम से इस क्षेत्र की समस्याओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है । नये कॉर्सेज से न सिर्फ रोजगार के अवसर सृजित होंगे बल्कि इससे डॉक्टरों पर भी कार्य- दबाव कम होगा ।
• लेखक - विनोद राठी _____________________________________________
In English
This time the Union Budget 2018-19 launches 'Ayushman Bharat' scheme. There are two major initiatives in this plan. In addition to 1.5 lakh health and health centers, 24 new government medical colleges and hospitals were established and second, under the National Health Protection Scheme, 40 percent of the country's population i.e. provision of health insurance up to five lakhs for more than 100 million households . This is the world's largest government-funded program in the field of health.
In order to ensure that 1.5 lakh health and health centers have been set up in this scheme, it will play an important role in ensuring access to health facilities to the common man.
Similarly, under the National Health Protection Scheme, the provision of health insurance up to Rs 5 lakh is also a great effort to reduce the burden of families of the weaker sections.
But the lack of quality treatment and doctors is the biggest challenge in this area, which needs attention. In the absence of quality, where the mortality of the constitution seems to be challenging to 'live the life of life' under Article 21, the country's 56 per cent urban and 49 per cent rural population will pay a heavy amount to the private hospitals in the absence of doctors. is forced .
According to World Health Organization statistics, the doctor patient ratio in India is 1: 17,00, whereas according to the standards, this ratio should be 1: 400. Lack of infrastructure like education, health, education also promotes urbanization which is not right for sustainable development.
The role of states in the successful implementation of this program can not be underestimated. It is necessary therefore that recently, by evaluating their position in the Health Index released by the Commission, make all the State Health Sectors in their priorities and aim to do outstanding performance.
In addition to the awareness of the scheme in the joint efforts of the States, people in general, the problem of this area can be greatly reduced by introducing new courses on the lines of MBBS for the treatment of common diseases. New cesses will not only create employment opportunities but also reduce work pressure on doctors.
By : - Vinod Rathee