रिपोर्ट के मुताबिक 14 - 18 आयु वर्ग के 25 फीसदी युवा जहाँ अपनी भाषा में स्पष्ट रुप से बुनियादी पाठ पढ़ने में सक्षम नही हैं वहीँ 36 प्रतिशत युवाओं को यह नही पता की हमारे देश की राजधानी क्या है ! नामांकन में लड़कियों की घटती दर लिंग भेदभाव की ओर इशारा कर रही है । जिस देश के डॉक्टरों व इंजिनयरो का विश्व लोहा मानता हो और इसरो के वैज्ञानिक अग्नि 5 जैसी मिसाइल व कार्टोसैट-2 जैसे उपग्रह अंतरिक्ष की दुनिया में स्थापित कर दिनोंदिन सुनहरा इतिहास रच रहे हो , वहाँ प्राथमिक शिक्षा की ऐसी स्थिति चिन्तनीय है ।
यद्दपि भारत ने विकास के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रुप में उभरकर झंडे गाडे हैं । पर अभी भी दुनिया की एक तिहाई जनसँख्या भारत में गरीबी से जूझ रही है । जिसका नकारात्मक प्रभाव शिक्षा पर देखा जा सकता है । अभिभावकोँ का शिक्षित न होना व जागरूकता का अभाव , शिक्षा की सुलभ पहुँच में बाधक है ।
हमारी शिक्षा व्यवस्था का रोजगारान्मुख न होना वैश्विकरण के प्रतिस्पर्धात्मक दौर में सबसे बड़ी चुनौती है । एक सर्वेक्षण के मुताबिक मात्र 26 फीसद व्यक्तियों ने माना कि रोजगार दिलाने में उनकी स्कूली शिक्षा काम आयी है । गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम के साथ अध्यापकों के प्रशिक्षण में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है । इसके अतिरिक्त उनमें पढ़ाने की प्रेरणा विकसित करना वक्त की माँग है ।
निश्चित रुप से सर्व शिक्षा अभियान , शिक्षा का अधिकार व लर्निग ऑउटपुट जैसे सरकारी प्रयास सराहनीय हैं किंतु धरातल पर इसके परिणाम को उतारने में प्रशासनिक संवेदनशीलता की दरकार है । विभिन्न सरकारी , गैरसरकारी संगठन व सिविल सोसायटी भी नुक्कड़ नाटकों या अन्य माध्यमों से आम जन मानस को शिक्षा के महत्व से अवगत कराने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं ।
शिक्षा किसी भी देश के अहम तत्वों में से एक होती है । इसीलिये ' शिक्षा -निवेश ' करना न सिर्फ कुशल मानव संसाधन का निर्माण करने की कवायद होगी बल्कि यह संविधान प्रदत्त ' अनुच्छेद 21 ए 'को प्रभावी रुप से सुनिश्चत करेगा जिसके मुताबिक शिक्षा हमारे देश के हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है ।